एक खूँटी … प्रवेशद्वार की !!!!!


एक खूँटी 



घर के दरवाज़े के पीछे 

मात्र एक खूँटी बची है 

जो सम्भाले है 

घर को और घरवालों को… 

सुनने में ज़रा  अजीब लगता होगा 

एक खूँटी पर इतना बोझ 

पर हक़ीक़त तो यही है 

सुबह ही खूँटी पर टंग जाती है 

घर की चाभी 

जो  अंत में 

घर से निकलने वाले के 

हाथ में आती है 

और उसको वो 

नियत स्थान पर रख 

दिहाड़ी के लिए 

निकल पड़ता …

घर वापसी परफिर 

सबसे पहले आने वाला सदस्य 

घर की चाभी वापस  खूँटी पर  टांग 

अपने अभावों की छतरी और 

उम्मीदों का थैला भी 

लटका देता …

इसी क्रम में 

खूँटी का भार रात होते होते 

असहनीय हो जाता …और,

दरवाज़े की झिरी थोड़ी बढ़  जाती 

खूंटी की उम्र थोड़ी घट जाती ।

एक समय दादाजी की इस खूँटी पर 

मुड़ा हुआ तार , जिसमें 

आए हुए अंतरदेशी पोस्टकार्ड 

और जमा खर्च की पर्ची 

लटकी होती थीं 

सालों साल इस तार में फँसी 

रिश्तों की बही को खूँटी 

अपने मोथरे हिस्से से 

लटकाए  यकीनन 

बुजुर्ग की मानिंद 

बिना मुरझाए 

बिना इतराए 

सदाबहार पेड़ की छाया बन 

सम्भाले रहती …

आज भी दरवाज़े के पीछे से 

बढ़ती हुए झिरी से 

घर को महफ़ूज़ रख 

रीढ़ की हड्डी बन 

जम कर खड़ी है……

घर के पहले दरवाज़े के पीछे ठुकी 

लोहे की एकमात्र खूँटी , 

अविश्वसनीय , 

पर 

घर की सात पुश्तों को 

पुनः पुनः

क़र्ज़दार बना 

अमर हो गयी है ।।


सा-आभार 

मंजरी 🙏🙏

Comments

  1. सम्वेदंशील मन की छुपी हुइ गहरी वेदना झलक रही है इस रचना मे .......

    बहुत सुंदर रचना ...!!

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  2. फुर्सत मिले तो कभी ब्लॉग पर भो आये
    शब्दों की मुस्कुराहट
    https://sanjaybhaskar.blogspot.com

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