एक किताब अनछुई सी
एक किताब अनछुई सी!!!!
उफ् !!!
एक किताब अनछुई सी
मेरे ज़हन में उतर गयी
पन्ने दर पन्ने पलटती
हर सफे पर प्यार का
हर निशां टटोलती
तुम से हम को जोड़ती ।
एक किताब अनछुई सी
मेरे ज़हन में उतर गयी
लाख कोशिशों के बाद
पढ़ लिया था एक सांस में
चार अक्षर फिसल गये
आंख नम हो गयी ।
एक किताब अनछुई सी
मेरे ज़हन में उतर गयी
हर सुबह थी नयी
नया अध्याय खोलती
सफैद स्याही से रंगे
पन्ने की तह में डूबती ।
एक किताब अनछुई सी
मेरे ज़हन में उतर गयी
मुस्तैद आज ,कल में
नयी कहानियां ढ़ूंढता
हँसते मुस्कुराते पात्र
नये मुखौटे ओढ़ते ।
एक किताब अनछुई सी
मेरे ज़हन में उतर गयी
लाल रंग में रम गयी
धनी चुनर ओढ़ कर
वसंत खिल गया जो
तुमसे मुझको जोड़कर
एक किताब अनछुई सी
मेरे ज़हन में उतर गयी
ढूंढ रही हूँ आज भी
मृगमरीचिका सी बन कर
कस्तूरी है छिपी कहाँ
बन बन भटक रही ...
एक किताब अनछुई सी
मेरे ज़हन में उतर गयी
हर सांझ तुमपर ही
न्योछावर हो गयी
माथे की शिकन घुल गयी
जब मृदु स्मित उभर गयी ।
एक किताब अनछुई सी
मेरे ज़हन में उतर गयी ।
पात्र यूँ ही चुने गए
मर्ज़ी यही थी रब की
अब तुम हो तो हम हैं
नहीं तो शून्य ही शून्य है ...
एक किताब अनछुई सी
मेरे ज़हन में उतर गयी ।
मंजरी 💕...
Babut sundar
ReplyDeleteThanx😊
Deleteमेरे ज़हन में भी उतर गई......अनछुई सी कई बातें 👌🏼
ReplyDeleteThanks dear😊
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