Unpublished Diary page-8 of a Home-maker(किराये का घर🏠)
किराये का घर🏠
घर एक सपना होता है
जिसको पूरा करने में आदमी की उम्र निकल जाती है
किसी सरकारी बाबू से पूछो तो
घर वो होता है जो जी पी एफ के पैसों से बनता है
और वो भी तब जब
रिटायरमेंट के एक दो साल पहले !!
किसी व्यापारी से पूछो तो
मुनाफे में कटौती कर के
घर का सपना पूरा होता है ....
तभी तो कहा जाता है
हर किसी की ख्वाहिश
'मेरा भी हो सपनों का महल'
क्योंकि छत तो सबको चाहिए
सारी उम्र तो सरकारी घरों में या
यूँ कहें तो किराये के घर में निकल जाती है
खानाबदोश ज़िन्दगी में हम
एक सपनों के घर का सपना मात्र संजोते रहते हैं
कभी माँ बहन बीवी से भी पूछा है ?
घर क्या होता है
नहीं ना
पूछ कर देखो तो सही ,
तो शायद एहसास हो जाएगा
सपना यह कब अपना होता है
किसी दिन गुस्से में पति बड़े आराम से कह देता है
"नहीं पसंद हूँ तो छोड़ दो मेरा घर"
ज़रा इनसे पूछो
माँ ने जब आंसुओं से भरी हुई आंखों से
अपनी लाडली को विदा किया था तो
कहा था "जा बेटी अब अपने घर जा"
पर देखो ना
बिना किसी हिचक के
घर से निकलने का फरमान जारी कर दिया .....
कहाँ जाऊंगी?
यह बीवी का वजूद अक्सर पूछता है
शायद वह ताउम्र किराये के घर में
खानाबदोश ज़िन्दगी जी रही है ........
किसी दिन किराया समय पर नहीं दे पाई या
मनमुताबिक नहीं अदा कर पायी तो
फिर
नए सिरे से
अपनी खुशियों को ढूंढने
किराये के घर की तलाश में निकल पड़ती है........
या टूट कर सिमट कर इसी घर में बैठ जाती है ।
मंजरी
Very well written thoughts aunty....shown the other side of the story which often go unnoticed and unheard
ReplyDeleteThank you for such amazing post Aunty ❤️
Thanks dear... Yes u r right 😍
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