चरखे की राजनीति
चरखे की राजनीति
वो भी एक आम था
बापू जिसका नाम था
सत्याग्रह की अग्नि में
होली उसने खेली थी
चप्पे चप्पे पर बिन बोले ही
घर घर पर लौ जगा
दागी उसने अहिंसा की गोली थी ।।
सूत कात कर
निस्तब्ध किया ,
हथकरघे की चरखी से
स्वदेशी की घुट्टी का
निरंतर स्वाद चखाया था ,
असहयोग , अहिंसा ,
शांतिपूर्ण प्रतिकारों को
शस्त्र बना ,
घाव भरपूर करवाया था ।।
दहक रही थी ज्वाला सीने में
खादी की हुंकार से
गूंज उठी थी,
करघे की कल कल ।
क्या अमीर ,क्या गरीब
पुरुषों और महिलाओं को
अनुशासित कर
कात दिया था
एक धागे की डोर में ।।
‘भारत छोड़ो’
‘करो या मरो ‘
‘मेरा जीवन मेरा संदेश ‘
‘जहां प्रेम है वहाँ जीवन है ‘
जैसे मुट्ठी भर नारों ने
तन मन का गठ जोड़ कर
ख़ुशियों पाने की परिभाषा को
नवभारत की परिकल्पना
का, बीज बो
लौह नींव सा
शन: शन: ,
स्थापित किया ।।
क्रोध को बना गहना
उसने ख़ुद्दारी को अपनाया था
निरपेक्ष राष्ट्र का बिगुल बजा
हिंसा मुक्त आंदोलन से
सचाई पर कदम बढ़ा
ले प्रतिज्ञा दृढ़ मन से
अनशन कर
धिक्कारा था ,
हार में भी
जीत का बिगुल बजाया था ।।
सन उन्नीस सौ सत्रह में दृढ़ विचार लिए
ऐनक वाले ने ,
विधवा , शूरवीर गंगबहन से मिलकर
नया इतिहास रचा ।
‘सौम्य तरीके से, आप दुनिया को हिला सकते हैं’
बड़ी सोच को जन्म दे कर ,
मुसलमान ग्रहपती की खोली में
जर्जर कतली को
पुनर्जन्म दे
चरखे को आज़ादी का स्तम्भ बनाया ।
साबरमती के संत ने
महिलाओं को रोज़ी रोटी का
नवआधार बना ,
‘किसी से मेहरबानी माँगना ,
अपनी आज़ादी बेचना है ‘
जैसी सोच को
जाग्रत कर ,
स्व-आमदनी का ज़रिया मान
अर्ध भूखे किसानो का उद्धार किया ।
मोटा कपड़ा
गहरी सोच
फैल गयी थी
राजनीति के गलियारों में ,
पूनी पूनी कत रही थी
चरखे और करघे में
स्वदेशी आत्मनिर्भरता
अपना, विनोबा ने
गांधी से जुड़कर ,
‘दिल की कोई भाषा नहीं होती,
दिल-दिल से बात करता है।’
खादी को अपना लिया ।
जुड़ रहे थे जन मानुष
गांधी टोपी की खोज से
श्वेत विचार धारण कर
‘जहां पवित्रता वहीं निर्भरता ‘
वाली सोच से
असत्य अस्वच्छता को नकार दिया
श्वेत खड़ी टोपी ने
कुरीतियाँ पर अंकुश धर
चरखे से बिन बोले ही
आज़ादी का आह्वान किया ।।
मंजरी 🇮🇳🇮🇳
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