आदत !!!

 

आदत!!! 

मुद्दतों से तुमने कोई मेरी नसीहत
नहीं ली
तुम्हारी पेशानियों  पर पड़ते हुए बल
देखें थे मैंने
आख़िरी बार तुमने मुझसे नज़रें
जब चुराईं
कुछ छुपाने की तुम्हारी कोशिश
नश्तर सी चुभ गयी
लाख चाहूँ मैं…फिर भी
तुम मेरी आदत हो
आदत को बदलना अब मेरे
बस में नहीं
गर तुम बदल जाओ तो
दिखाना नहीं
तुमसे है वजू़द मेरा
इस को मिटाना आसां नहीं.......


तुम हो …

बहुत ख़्वाब देखे हैं एक से …

अलहदा अलहदा …

मिलना कोई मजबूरी होती , तो 

उसकी वजह भी ढूँढ लेते 

कभी किसी ख़ुशनुमा शाम 

किसी अंधेरे दिन 

कुछ पाने की ख़ुशी 

कभी बेवजह की मुस्कुराहट 

तुम्हारे होने और ना होने का फ़र्क़ 

तलाश ही लेते हैं 

चाँद जब अपने शबाब पर होता है 

इश्क़ को एहसास होता है कि तुम हो !!!!




मंजरी 



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