कारवाँ कश्तियों का ⛵️
कश्तियों पर सवार
हम बेख़ौफ़ चल पड़े
अनजान राहों
के
अनजान मोड़
सफ़र के हर पड़ाव पर
ना जाने ,
कब बदल गए …
शुक्र मनाओ !!
जो परछाईयाँ
चलती थी साथ में
मेरी गुस्ताखीयों को देख
आज मुझसे ही रूठ गयीं
उफ़्फ़ !!!
मैंने मुस्कुराते हुए
तेरी राहबारी में
आदत क्या बदल डाली…
रुसवाइयों ने
मेरी हस्ती ही मिटा डाली ।
कश्तियों का कारवाँ
यूँ ही बढ़ता चला गया
हम यक़ीन का दामन सम्भाले
हाशिए पर खिसकते चले गए ।।
मंजरी ⛵️
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