सूखती शाख

 सूख्ती शाखों पर

तुमने
क्या जादू किया
कि
पल भर में
ख़ुशबू बिखेरती
फूलों की टहनियों में
नयी तरंग
नयी उमंग
दौड़ गयी
मुस्कुराने की वज़ह
तुम ही तो थी
क्या यह
काफ़ी नहीं था
कि
आज ढलते हुए
सूरज को
कल फिर से उगने की
वज़ह मिल गयी
तुम्हारी शख़्सियत की
तारीफ़ में
एक ख़ासियत
और शुमार हो गयी
कि बारिश की बूँदों
के मानिन्द
रिश्तों को
सहेज कर रखना
किस क़दर
शौक़ ए ज़िन्दगी
बन पड़ा ।

..............
मंजरी गुप्ता पुरवार

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