बाज़ार
बाज़ार
चकाचौंध है हर तरफ़
बाज़ार जमा है
ख़रीद फ़रोख़्त में
हर शख़्स लगा है …
आए तो बड़े बड़े ख़रीदार
मगर दाम ना लगा पाए …
ये बाज़ार है यारों
इस में सब कुछ बिकता है
कभी बचपन को बेच कर
दो निवाले ख़रीद लाए
तो कोई जवानी को बेच कर
बुढ़ापा ख़रीद लाया …
जिस्म खरीद कर
फिक्र बेच दी ......
मैंने तन्हाई बेचकर
कलम खरीद ली ...
गिरवी हुए ज़मीर ने
खुद को कमज़ोर कर दिया …
ये बाज़ार है यारों
दिलों को बेच कर
हसरत ख़रीद ली …
चैन बेच कर
ज़मीन ख़रीद ली …
शौक़ की नुमाइश तो रेहड़ी पर होती है
कभी दाम मिलता है
तो कोई मुँह फेर लेता है
देखो ना, मकान ख़रीद कर
घर बेच दिया
गहने गढ़वाये तो
शालीनता बिक गयी
हाए !!!!!
मौत बेच कर नक़ाबपोशों ने
निकम्मा बना दिया ………
और तो और …ग़द्दारों !!!
देश बेच कर
सोना कमा लिया
हर कोई बदनाम है
क्योंकि हर शक्स नीलाम है !!!!!!
आओ एक नया संसार बसाये
नफरत को बेंचकर
इंसानियत खरीद लाएं
बाज़ार में रौनक लगाएं
चलो तमन्नाओं पर tax दें लगा ,
तो क्या पता एक गरीब
फिर से बिकने से बच जाए ..
मंजरी
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