उधार
उधार
थोड़ा उधार अभी बाक़ी है
बही में हिसाब ज़ारी है
पन्नों की तह में ज़ब्त है लेन देन
कब से चुकाने की
फ़िराक़ में हैं हम
फिर तस्वीर का रुख़
देख
खींच लेते हैं हम हाथ
चुका दिया तो रिश्ता ख़त्म
बाक़ी रहा तो नज़रें नम
तुम भी तो याद नहीं दिलाते
बार बार यूँ नज़रें चुराते
कैसी है बेबसी ?
कभी वैसे ही आ जाना
थोड़ा माँगना
बाक़ी तब भूल जाना …
किश्तों को मैं बढ़ा दूँगी
रिश्तों की डोर को
एक साँस और दे दूँगी
तुम भी अपना क़र्ज़ जता देना
मैं भी थोड़ा ही सही
तब …चुका दूँगी !!!!!
मंजरी
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