ख़ुदगर्ज़ एहसास 💖

 ख़ुदगर्ज़ एहसास 


बिना अल्फ़ाज़ के तुमको 

सुनना सीख लिया है……

धीरे से पहले मुझे देना 

फिर जताना …और 

अपनी प्लेट से 

आहिस्ता से मुझे खिलाना 

काफ़ी नहीं क्या …

तुम्हारे एहसासों को पढ़ना ?

कदमों को ठहर कर रखना 

थोड़ी दूर चलकर 

घड़ी घड़ी पलटकर 

मुझ तक पहुँचना 

काफ़ी नहीं है क्या

तुम्हारे कदमों को नापना ?

इधर उधर की बातों में उलझाना 

अपनी बात को 

चुटकियों में 

आँखों से पहुँचाना 

तुम्हारा हाथ पकड़ना 

और मेरा छिटक जाना 

क्या काफ़ी नहीं है …

मेरा ख़ुदगर्ज़ होना ?

नीची नज़रों में 

मेरी शर्म को 

हया का नाम देना 

फिर चुहल कर 

मुझे लाल कर देना 

काफ़ी नहीं क्या

तुम्हारे इशारों को समझना ?

हल्की सी छुअन 

से सिहर जाना 

कहीं तुम्हारे स्पर्श से 

मचल जाना 

क्या काफ़ी नहीं है 

इश्क़ को सरेआम करना ……

बड़ी ख़ुदगर्ज़ है 

मेरे एहसासों की पोटली 

तुम तक आते हुए 

कहीं रुक सी जाती है 

कभी खुद से रश्क करती है 

तो कभी तुम में खो  जाने को मचलती है 

तुम्हारी हो कर भी 

तुम्हारी होने से …… क्यों डरती है ।। 


मंजरी 💕



Comments

  1. So could romantic..So vivir I could literally visualize..Jhuki hi nazar
    Wow..beautiful

    ReplyDelete

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