संवाद …… अंतहीन
संवाद
पहले तो तुम अपनी
झीनी सी मुस्कुराहट ले
मेरे पास आते हो
फिर हौले से
मेरे पहलू में
बैठ जाते हो
शन: शन:
मुझ पर स्नेह के पंख
पसारते हो !!!!
मैं
अपेक्षाओं और
आकांक्षाओं के
झनझावत में डूब
तुमको अनदेखा कर देता हूँ
प्रिय ,
अगर तुम
अपने को मुझसे बाँट पाते
शायद,
ज़्यादा ना सही
थोड़ा तो दुनियादारी से
उबर पाते !!
किसी रोज़
तुम आना
अवसाद को
परे रख
मेरे पहलू
में बस बैठ जाना ……
प्रश्नवाचक निगाह
पर अर्ध - विराम लगा …
मुझ तक
पूर्णविराम
की गुंजायश
में उम्मीदों का सवेरा
और
आज की शाम काट जाना…
कल की कल देखेंगे
एक उजाले की उम्मीद में
फिर एक बेहतरीन शाम
पर अवसाद के साये
नहीं पड़ने देंगे …
!!!!!
मंजरी 🖋
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