आम नारी की ख़ास कहानी …उसकी ज़ुबानी

आम नारी की ख़ास कहानी …उसकी ज़ुबानी


When I was growing up , my parents inculcated all the values of the cultured middle class, simultaneously taught me to be independent. Once during my teen years I saw an officer’s wife treated badly by her family members when she was mourning the untimely demise of her husband. Later it was revealed that she could not even finish her basic education and married quite early. Which made her situation so vulnerable that she was forced to join office as a peon to become economically independent and to take care of her three kids. Still feel horrified as it became  an eye opener for many. Education is strong weapon for girls to safeguard themselves from the atrocities of the male dominated society. Earlier the girls were seen as the pride of the family and a suitable groom from higher status was considered the best match so , while performing kanyadan proud parents can show off. How fast the time has changed now parents ask their children to find suitable match irrespective of caste, creed and cultural background.  Change is evident from the attitude but smaller towns still needs to come out from the clutches of narrow minded ness . Specially now the groom has to learn to assimilate in new thought of progressive society ….let’s go through the poetic  journey of a common girl…. 




गुड्डे गुड़िया का ब्याह   
करते करते 
ना जाने कब 
बचपन की दहलीज लांघ 
स्त्री बन गए ।
अनोखी सपनो की दुनिया में डूबे  हुए 
कौन अपना है 
और कौन पराया 
इस जोड़ तोड़ में गणित के गुणा भाग भी 
सीख लिये ।
फिर कब 
शादी की रंगीन दुनिया को 
कुछ ज़्यादा ही तवज़्ज़ो दे 
ख्वाबों में खो गए .....
कभी यहाँ कभी वहाँ 
तबादलों और बदलते स्कूलों ने 
दुनिया के बड़े रंग दिखाए 
पर  हर हाल में ढल जाना है 
यही समझाया 
"नहीं तो ससुराल में कैसे adjust होगी "
इसका ताना यूँ ही सरका दिया 
लड़की होने का बोझ 
समाज में कह कर नहीं जताया 
रोज़मर्रा की ज़िंदगी में 
बखूबी शामिल करवाया 
इसकी तालीम यूँ भी है , कि
अच्छे दूल्हे के इंतज़ार में 
डिग्रीयों के ढेर का पहाड़ 
हमेशा छोटा ही दिखाया ...

स्वतंत्र देश हुआ था, 
हम स्त्रियां नहीं!!! 
किसी और के हाथों की कठपुतली बन 
फिर भी घर बना रहे थे ……… 
अधिकार कम  थे 
दायित्व अनेक 
विवाह की बेड़ियों ने 
पैरों तले ज़मीन ही खींच ली तो 
पैरों को किस पर टिकाएं ....
नई ज़मीन पर पैर कितने टिक पाते हैं 
इतनी economics 
समझने में औरत को  वक्त नहीं लगा ।
 चल पड़ीं
ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर आंख मूंद  …
अफ़सोस ………… बस यही कि, 
कार्डियोग्राम के ग्राफ को जीने की 
पुरज़ोर कोशिश करते करते 
पता नहीं कब …… 
ज़िन्दगी सपाट बन गयी .. .....
पर  अपने उन तक 
फिर भी पहुँचने में
एक अरसा लग गया 
सात फेरों के फेर ने 
एक अदद मंगलसूत्र के साथ 
एक खाली कैनवास भी  थमा दिया 
कूची तो हाथ में थी
पर विडम्बना यह कि 
रंग कोई और ही बिखेर रहा था
बड़ा ही खूबसूरत नजारा था
कितने ही छोटे छोटे स्ट्रोक्स लगाओ 
पर आखिर में कोई और 
बड़ा  स्ट्रोक मार कर
सिक्सर फेंक देता ....
युद्ध जो अनकहा था ...मांन लीजिये
बहुत ख़ूबसूरत नज़ारे देखने को मिल ही जाते थे
ईगो तो खिड़की की सिल पर टांग दी थी
दोनो में से जो जिस पर भारी पड़ता
ईगो नामक वस्तु को खिड़की से उठा कर
अपनी नाक पर रख लेता
बातें काली मिर्ची की मानिंद
तीखी परंतु छोटी थीं
नून तेल की जद्दोजहद में
पढ़ाई
तड़के का काम करती रही ....
बेड का कौन सा कोना किसका होगा
यह मुद्दा तो अभी तक अनसुलझा ही रहा 
पर कब तक चलती यह कहानी
किसी दिन तो युद्धविराम भी होना ही था
सो हो गया
अब दोनों एक साथ  कूची आधेभरे कैनवास पर
खुल्लम खुल्ला चलाते
क्या करें जनाब जिसका जितना गहरा रंग
उसके उतने गहरे जख्म
एक दूसरे के मलहम पहले कौन लगाएगा
इस मुद्दे को तो समझने के लिए
7 जन्म भी कम पड़ेंगे
खैर समय उड़ता जा रहा है 
कौन है जो समय को रोक पाया है ....
रंगीन कैनवास 
काले सफेद में तब्दील हो गया 
हौले हौले 
असल जिंदगी में हम एक से दिखने लगे थे 
कशमकश अब छोड़ कर 
बातों की छींटाकशी को
तवज़्ज़ो कम देने में 
पारंगत हो चले थे...😊
हाँ एक बहुत समझदारी दिखाई 
जो कैनवास में 
रंग भरते भरते 
ज़िन्दगी को जीने की कला भी 
बखूवी सीख गए !!!!!!


Manjari 

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